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Kuch Khattaa Ho Jaay Review: सिंगर का सिनेमा में एक्टर हो पाना इतना मीठा भी नहीं, तो चलो कुछ खट्टा हो ही जाए

Kuch Khattaa Ho Jaay Movie Review

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Kuch Khattaa Ho Jaay Review: सिंगर का सिनेमा में एक्टर हो पाना इतना मीठा भी नहीं, तो चलो कुछ खट्टा हो ही जाए

पंजाबी फिल्मों के अधिकतर स्टार, गायक ही है। गायकी में सफलता मिलने के बाद या तो खुद अपने लिए फिल्में प्रोड्यूस कर लेते है या तो कोई ना कोई निर्माता टकरा ही जाता है। पंजाबी फिल्में बड़ी भव्य स्तर पर बन रही हैं, रिलीज भी हो रही है, साथ ही बिजनेस भी अच्छा हो रहा है। लेकिन मुख्यधारा की सिनेमा से नहीं जुड़ पा रही हैं, जिस तरह से अब साउथ की फिल्में हर जगह रिलीज हो रही हैं। वजह यह है कि सिंगर तो अच्छे होते हैं, लेकिन अभिनय में मार खा जाते हैं। पंजाबी इंडस्ट्री के सुपरस्टार सिंगर गुरु रंधावा ने अपने लिए नया प्रयोग किया है। पंजाबी फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत ना करके उन्होंने हिंदी फिल्म ‘कुछ खट्टा हो जाए’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। हिंदी फिल्मों में जिन गायकों ने बतौर एक्टर अपनी किस्मत आजमाई है, वह सफल नहीं हुए हैं। चाहे वे सोनू निगम, हिमेश रेशमिया, मीका सिंह, शान, आदित्य नारायण जैसे सिंगर ही क्यों न हों। गुरु रंधावा की फिल्म ‘कुछ खट्टा हो जाए’ देखने पर यही लगता है कि वह भी अतीत में गायक से नायक बने लोगों के राह पर हैं।

फिल्म ‘कुछ खट्टा हो जाए’ की कहानी आगरा के रहने वाले एक आलसी और अक्खड़ स्वभाव के दिलफेक लडके हीर और आईएस की तैयारी कर रही लड़की इरा की है। हीर के दादा जी चाहते हैं कि वह शादी कर ले ताकि वह अपने पोते का मुह देख सके क्योंकि चावला खानदान में पिछले 28 वर्षों से घर में कोई बच्चा नहीं पैदा हुआ है। इरा की मां शादी का इसलिए दबाव डालती है ताकि इरा की शादी के बाद उसकी छोटी बहन की शादी हो सके। हीर और इरा की एक ही समस्या है। इरा, हीर से शादी करने का फैसला करती है, लेकिन वह हीर से वचन लेती है कि जब तक वह कलेक्टर नहीं बन जाती, तब तक दोनों पति – पत्नी के रूप में नहीं बल्कि दोस्त के रूप में ही रहेंगे।

हीर के दादा जी एक ही सपना है कि वह परदादा बन जाएं, लेकिन बाद में उन्हें इस बात का अहसास होता है कि बच्चों पर अपनी इच्छा को थोपना गलत है। जब चावला परिवार की नौकरानी पैसे के लिए सरोगेट मां बनाना चाहती है तो हीर के दादा जी कहते हैं कि कैसा जमाना आ गया है। जमीन किसी की, बीज किसी का और फसल किसी और की। बाद में जब उन्हें इस बात का पता चलता है कि उनकी बहू मां नहीं बन सकती है तो अनाथालय से दो बच्चों को गोद लेते हैं और अपनी बहू की गोदी में डाल देते हैं। तेलुगु सिनेमा के निर्देशक जी अशोक इस फिल्म से पहले हिंदी फिल्म ‘दुर्गामती’ का निर्देशन कर चुके हैं जिसमें भूमि पेडनेकर और अरशद वारसी की मुख्य भूमिकाएं थी। फिल्म ‘कुछ खट्टा हो जाए’ में उनके निर्देशन का कौशल नहीं दिखा। फिल्म की पटकथा खराब तो है, फिल्म के संवाद भी प्रभावशाली नहीं हैं।

इस फिल्म में हीर की भूमिका गुरु रंधावा ने निभाई है। उनकी मुस्कान बहुत ही मनमोहक है लेकिन उन्हें अभी अपनी एक्टिंग को और निखारने की जरूरत है। फिल्म में इरा की भूमिका सई मांजरेकर ने निभाई है। सलमान खान के साथ फिल्म ‘दबंग 3’ में काम करने के बाद अगर अभी तक उनको अच्छे मौके नहीं मिले हैं तो उनके लिए जरुरी हैं कि थोड़ा सा आत्ममंथन जरूर करें और अपने एक्टिंग स्केल पर ध्यान दें। इस फिल्म का पूरा दामोदार अनुपम खेर के कंधे पर है। अनुपम खेर जिस तरह से अक्सर कहते हैं कि अपनी हर फिल्म न्यूकमर की तरह करते हैं, उसी तरह की मेहनत उनकी इस फिल्म में नजर आई। हीर के दादा जी की भूमिका में उनका किरदार सब पर भारी पड़ा। चावला परिवार के सदस्यों में इला अरुण, अतुल श्रीवास्तव, परितोष त्रिपाठी, परेश गनात्रा का भी काम प्रभावशाली रहा है। निर्देशक जी अशोक ने अपने साऊथ फिल्मों के कनेक्शन का फायदा उठाकर ब्रह्मानंद को इस फिल्म में सिर्फ मिसयूज ही किया है। रही बात म्यूजिक की तो हीरो गुरु रंधावा हैं, और म्यूजिक उनका कैसा होता है, सबको पता ही है।

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